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Posted by : Sushil Kumar
Sunday, March 22, 2009
साभार गूगल |
सैकड़ों चहरे देखता हूँ भीड़ में
सड़कों पर आते-जाते
पर देख नहीं पाता कभी
चेहरों के पीछे लगे चेहरे
देखता हूँ रंग-बिरंगे कपडे़ और सज-धज
जमाने के साथ रोज़ करवट लेते फैशन और रिवाजें
पर देख नहीं पाता इनमें छिपी हुई दुष्टताएँ,
प्रेम की वासनाएँ, लालच और रोष...
टुकडे़-टुकड़े में देखता हूँ
जीवन के सच-झूठ, सपने और भविष्य
मगर एकबारगी नहीं देख पाता कभी इन्हें
जिस भी ज़मीन पर खडा़ होता हूँ
नहीं दिखाई देती वहाँ से पूरी की पूरी दुनिया
आंखों में पड़ते छाले भी कभी
ये आँखें खुद नहीं देख पातीं
न मन में चुपके-चुपके जड़ें जमा रहीं
निकम्मे खरूँस देवताओं की काली
करतूतें ही दीखती हैं
जितनी दीखती है, उनमें
नायाब ही रह जाते हैं
अनुभव की अनगिन तारें...
स्पंदन, स्वप्न, सूत्र और आकांक्षाएँ
अधूरे रह जाते हैं...
आँख बनते हुए हाथ
अपनी कुलांचे भरती अनंत इच्छाएँ...
कविताओं में पूरी होती
शब्दयात्राएँ।
badhiya abhibyakti....
ReplyDeletearsh
सच कविताओं में ही पूरी होती है शब्दय़ात्राएँ।
ReplyDeleteसैकड़ों चहरे देखता हूँ भीड़ में
सड़कों पर आते-जाते
पर देख नहीं पाता कभी
चेहरों के पीछे लगे चेहरे
बहुत बेहतरीन। काफी दिनों के बाद पढी है आपकी रचना।
SUSHEEL KUMAR KEE LEKHNI SE EK AUR
ReplyDeleteSASHAKT RACHNA.KITNA SATYA CHHIPAA
HAI IN PANKTIYON MEIN--
AANKHON MEIN PADTE CHHALE BHEE
KABHEE YE AANKHEN KHUD NAHIN
NAHIN DEKH PAATEE.
YAHEE JEEVAN HAI,YAHEE SANSAR
HAI.BAHUT KHOOB.BADHAAEE
धन्यवाद प्राण शर्मा जी। आप इतनी गंभीरता से मुझे पढ़ते हैं,इसका गर्व है मुझे।
ReplyDeleteSusheel ji
ReplyDeleteसैकड़ों चहरे देखता हूँ भीड़ में
सड़कों पर आते-जाते
पर देख नहीं पाता कभी
चेहरों के पीछे लगे चेहरे
बेहतरीन, Ek bahoot hi shandaar rachna, anubhav ke saath saath paki huyee rachna
वाह भाई ,क्या कविता लिखी है। आदमी के भीतर के बुराई को उघाड़ कर रख दिया है आपने। बधाई।
ReplyDeleteएक गंभीर रचना। धन्यवाद। दुमका कब आ रहे हैं?
ReplyDeleteएक गंभीर रचना। धन्यवाद। दुमका कब आ रहे हैं?
ReplyDeleteशब्द कभी अधूरे नहीं होते
ReplyDeleteअधूरे रहते हैं अनुभव
न हो ऐसा अनुभव
छिपा जिसमें हो पराभव
ऐसा संभव नहीं है
बिना दुष्टता के शिष्टता का
और बुराई के अच्छाई का
तथा गरीबी के अमीरी का
कोई तत्व नहीं है
इसलिए अधूरा कोई शब्द नहीं है।
सैकड़ों चहरे देखता हूँ भीड़ में
ReplyDeleteसड़कों पर आते-जाते
पर देख नहीं पाता कभी
चेहरों के पीछे लगे चेहरे
देखता हूँ रंग-बिरंगे कपडे़ और सज-धज
जमाने के साथ रोज़ करवट लेते फैशन और रिवाजें
पर देख नहीं पाता इनमें छिपी हुई दुष्टताएँ,
प्रेम की वासनाएँ, लालच और रोष...
waah waah
naye aavaran hetu badhai, kal sbere 4-5 dino k liye patna or bokaro ja raha hoon, fir aa k....
ReplyDeleteस्पंदन, स्वप्न, सूत्र और आकांक्षाएँ
ReplyDeleteअधूरे रह जाते हैं...
आँख बनते हुए हाथ
अपनी कुलांचे भरती अनंत इच्छाएँ...
कविताओं में पूरी होती
शब्दयात्राएँ।
और पूरी होती अभिलाषायेँ
जब कवितायेँ खुद बन
जाती हैँ मात्रायेँ ...
सैकड़ों चहरे देखता हूँ भीड़ में
ReplyDeleteसड़कों पर आते-जाते
पर देख नहीं पाता कभी
चेहरों के पीछे लगे चेहरे....
bhot gahri rachna ytharth ko chuti hui...!!
सुंदर कविता है भाई। आपके ब्लाग पर पहले भी आता रहा हूं।
ReplyDeleteRekha Maitra rekha.maitra@gmail.com Sun, Mar 22, 2009 at 7:56 PM
ReplyDeleteTo: hindi-readers+owner@googlegroups.com
apkee chand kavitayen pareen. yoon to sabhee kavitayen hridaysparshee hein ,par mahuye walee kavita or pahar par ugee bhor marmsparshee hai. Badhaee!!!!!
अति सुंदर,
ReplyDeleteआपकी कविता प्रभावित करती है। शुभकामना।
बहुत खूब। कहते हैं कि-
ReplyDeleteमन दर्पण को जब जब देखा उलझ गईं खुद की तस्वीरें।
चेहरे पे चेहरे का अन्तर याद दिलाती ये तस्वीरें।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Susheelbhai
ReplyDeleteVery nice poem.
Can u tell me the meaning of 'Kulanche" plz?
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
हर्शद भाई,नमस्कार।
ReplyDelete“कुलांचे” का अर्थ होता है- चौकड़ी, छ्लांग या उछाल।
बहुत सच्ची बात कही आपने ..अच्छी लगी आपकी कविता
ReplyDeleteकविताओं में पूरी होती
शब्दयात्राएँ।
बहुत सुंदर रचना ... हमेशा की तरह ही सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteAlvis alvis@bigpond.net.au hide details 2:55 pm (2.5 hours ago)
ReplyDeleteto ????? ????? sk.dumka@gmail.com
date Mar 23, 2009 2:55 PM
Dear Suhshil Ji ,
Thanks for forwarding yr poetry.
It was nice to read.
Pls keep in touch.
Thanks & Regards,
Abbas Raza Alvi
पीडा को अत्यंत सुन्दर और प्रभावी ढंग से आपने शब्द दिया है....
ReplyDeleteरचना बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है...ऐसे ही लिखते रहें,शुभकामनाये....
सैकड़ों चहरे देखता हूँ भीड़ में
ReplyDeleteसड़कों पर आते-जाते
पर देख नहीं पाता कभी
चेहरों के पीछे लगे चेहरे
बहुत सुंदर भाव ...दिल को छू देने वाली अभिव्यक्ति...
बहुत ही सुंदर, आप ने पीडा को एक रुप दे दिया.... एक सचाई ...लिख दी आप ने इस इंसानो के जंगल की.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सच्ची बात कही आपने ..अच्छी लगी आपकी कविता
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहें,शुभकामनाये....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteKavitaon me hi puri hoti hain shabdyatrayen.vastvik jeevan me iska tartamya tutta hi ja raha hai.Ek aur sargarvit rachna ke liye badhai swikaren.
ReplyDeleteRekha Maitra rekha.maitra@gmail.com to hindi-readers+.
ReplyDeleteMar 30, 2009 4:27 AM
adhooree shabd yatrayen ek sundar kavita ban paree hei.
Chahe ham kuchh bhi likh le lekin Kavitao ka jadu kuchh alag hi hota hai!! Sundar Abhivyakti
ReplyDeleteShaifaly
बहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !
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