Posted by : Sushil Kumar Saturday, December 1, 2012

[ चित्र - गूगल - साभार ]



  1. एक –

पहले-पहल जब चलना सीखा 
और माँ की गोद से उतर 
देहरी पर पहला पाँव रखा
तो दालान में चिड़ियों को देखा –
अपनी चोंच में तिनका दबाये 
घोंसला बुनने में मगन थीं
कभी चोंच से अपने बच्चों को दाना चुगा रही थीं 
तो कभी चोंच मारकर अपनी बोली में उसे
फड़फड़ाना, उड़ना-फुदकना सीखा रही थीं 

सचमुच इतने कुसमय में भी नहीं बदला 
चिड़ियों का प्रेम |

 2. दो –

गौर से सुनो और महसूस करो कवि,
रेत के भीतर बह रही पहाड़ी नदी का स्पंदन
कोख में गिरते एक बूँद की हलचल
अंडों के भीतर सुगबुगाते पंछियों की आहट
अपने ही शरीर में कोशिकाओं के टूटने-बनने की क्रियाएँ 
मन के किसी कोने रूढ़ हो रहे शब्दों की तड़पन
फिर कहो, क्या कोई कविता नहीं आकार ले रही तुम्हारे भीतर ? 

3. तीन

पहाड़ से उतरती आड़ी-तिरछी ये पगडंडियाँ
नदी तक आते-आते न जाने कहाँ बिला जाती हैं

बलुई नदी पार कर रहे मवेशियों के खुरों की आवाज़
पहाड़ी बालाओं के गीतों के स्वर 
गड़ेरियों की बाँसुरी की धुन
माँदर की थाप
जंगली फूलों की गंध
पंछियों का शोर
- ऐसा कुछ भी नहीं जा पाता नदी के उस पार
- घनी आबादी वाले हिस्से में

सिर्फ़ जाते हैं वहाँ
कटे हुए जंगल, कटे हुए पहाड़
और अपने घर-गाँव से कटे 
काम की खोज में  
पेट की आग लिए पहाड़ी लोग |

4. चार –

सिर पर लकड़ियों का गट्ठर लादे
कमर कमान-सी झुकी
उस बूढ़े लकड़हारे का रास्ता रोककर
उससे जीवन का रहस्य जानना चाहता हूँ -

न जाने अपने जीवन के कितने वसंत देख चुका
वह बूढ़ा आदमी
लकड़ियों का बोझा धीरे से अपनी पीठ से उतारता है
फिर तनकर एकदम खड़ा हो जाता है
अपना पसीना पोछता है
मुझे देखकर थोड़ा मुसकुराता है

फिर सिर पर अपना बोझा लाद
पहले की ही तरह झुक जाता है
और बिना कुछ कहे आगे बढ़ जाता है |

5. पाँच –

वे पहले से ज़्यादा मुस्कुराते हैं
मुहल्ले में पहले से ज़्यादा नजर आते हैं
कहीं भी दिखते ही हाथ उठाते हैं
हाथ जोड़ते हैं
घर आते हैं तो सिर्फ़ सादा पानी पीते हैं
न दूध न नींबू की  - 
बहुत आरजू-मिन्नत करने पर अखरा काली चाय पीते हैं
मगर आजकल बहुत बतियाते हैं
बहुत भरोसा भी दिलाते हैं
फिर चुपके से अपना चुनाव-चिन्ह दिखाते हैं |

{ 7 comments... कृपया उन्हें पढें या टिप्पणी देंcomment }

  1. भाई सुशील जी, खूबसूरत प्रभावशाली कविताएं हैं। मैं इन्हें क्षणिकायें नहीं मानता, मुकम्मल कविताएं हैं ये…

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन क्षणिकायें

    ReplyDelete
  3. जीवन के कितने रंग ..
    अनछुए पहलुओं पर लिखा है आपने .
    .
    सुंदर भावभिव्‍यक्ति !!

    ReplyDelete
  4. Dil ko chhoo gayi aapki yah rachna.
    bahut-bahut badhyi...

    ReplyDelete
  5. SUSHEEL JI , AAPKEE CHHOTEE - BADEE KAVITAYEN
    JAB - JAB PADHTA HUN TAB - TAB UNMEIN KHO JAATAA
    HUN . IN KAVITAAON MEIN BHEE KHO GAYAA HUN .

    ReplyDelete
  6. खुबसूरत गहन अभिवयक्ति.सभी क्षणिकाएँ बहुत गहरे भाव लिये हुए हैं. शुभकामनायें.

    ReplyDelete

संपर्क फॉर्म ( ईमेल )

नाम*

ईमेल आई डी*

संदेश*

समग्र - साहित्य

ताजा टिप्पणियाँ

विधाएँ

संचिका

सुशील कुमार . Powered by Blogger.

- Copyright © स्पर्श | Expressions -- सुशील कुमार,हंस निवास, कालीमंडा, दुमका, - झारखंड, भारत -814101 और ईमेल - sk.dumka@gmail.com -