Posted by : Sushil Kumar Saturday, October 17, 2009

साभार : गूगल 
[संताल-विद्रोह (1855) के शहीद वीर-सपूत सिदो-कान्हु की पाँचवी पीढ़ी के वंशज बेटाधन मुर्मू के (14.07.07 को) असामयिक निधन पर]

कई बार गिरे और उठे बेटाधन मुर्मू तुम
उनकी चोट अपनी अदम्य छाती पर सहकर,
पर इस बार उठ गये हो सर्वदा के लिये।

रात से ही सुकी, दुली,जोबना, मंगल सभी
तुम्हारे शव पर पछाड़ें खा रहे हैं
हाँक रहे हैं,तुम्हें जगा रहे हैं

सुराज के सपने और
विकास का सब्जबाग़ दिखाकर
तुम्हारी तालियाँ बटोरने वाले
तुम्हारे ही भाई-बंधु
तुम जैसी चमड़ी के रंग वाले
तुम्हारी ही बिरादरी की भाषा बोलते
तुम्हारे भीतर पैठकर
शासन करते हैं तुम्हारे उपर
और तुम्हारी दूर्बल स्नायुओं में
बाहरी-भीतरी के भेद का ज़हर घोलकर
तुम्हें तोड़ लेते हैं हर बार
अपने पक्ष में अक्षर-अक्षर।

झारखंड बने आठ साल हो गये
कितनी पर बदल पायी, बेटाधन
झाड़-झाँखड़ झारखंडी भाई-बहनों की तस्वीर ?
पहले तो बिहार पर तोहमत लगाते थे
और अलग प्रदेश की लड़ाई में तुम्हारा साथ लेते थे।

पर कितने सुखी हो पाये
झारखंड अलगने के बाद ?
तुम्हारे पूर्वजों की आँखें तो
घुटन-शोषण से मुक्ति का सपना देखते-देखते
पथरा गयीं थीं, पीठ उनकी उकड़ूँ हो गयी थी
कंधे झुक गये थे ...
और उनके जाने के बाद...
तुम भी बराबर लड़ते रहे
अपने बाप-दादों की वह लड़ाई
(जो विरासत में मिली तुम्हें।)

दु:ख है, तुम्हारी ज़मीन पर अंधेरा
अब भी कायम है !
समय बदला शासन बदला
मुद्दे बदले लड़ने के ढंग बदले
पर कितनी बदल पाये तुम अपनी तक़दीर
और कितना बदल सका जंगल का कानून ?

भोगनाडीह* के भूखे-नंगे लोग
चिथड़ों में लिपटे तुम्हारे शव को घेरे खड़े हैं
कातर नज़रों से निहार रहे हैं कि
इलाज़ की आस में
कैसे कराहते हुये ख़ून की उल्टियाँ करते
आखिरकार तुम्हारे साँस की डोर टूट गयी !

सुकी के पास इतने भी पैसे नहीं कि
अपने पति के अंत्येष्टि के वास्ते
दो गज कफ़न का इंतजा़म कर सके !

कुछ ही दिन हुए ,
हूल-दिवस (तीस जून) पर
झक्क सफ़ेद कुरते वालों का
जमावड़ा था तुम्हारे गाँव में
वादों और घोषणाओं की झड़ी लगा दी थी
उसने आकर भोगनाडीह* में
और पक्का भरोसा दिया था कि
तुम्हें मरने नहीं दिया जायेगा
बेहतर इलाज के लिए बाहर भेजा जायेगा
पर हुआ वही जो
हर हूल-दिवस पर होते आया है, यानि
वक्ष तक वीर शहीद सिदो-कान्हु की प्रतिमा को
पुष्प-मालाओं से लाद, मत्था टेक
बखानते रहे घंटों
उनके वीरता की गाथाएँ ,फिर
जेड श्रेणी की सूरक्षा-कवचों के बीच
चमचमाती गाड़ियों में बैठ
भोगनाडीह की कच्ची सड़कों पर
धूल उड़ाते हुये राँची कूच कर गये।

बेटाधन, तुम उसी वंशज के
पाँचवी पीढ़ी के संतान हो
जिसने तीरों से बिंद्ध दिये थे
जुल्मी महाजनों को
अठारह सौ पचपन के हूल में,याद करो।
तुम्हारे हिस्से की लड़ाई
अभी खत्म नहीं हुई है बेटाधन

तुम्हारी ठंढी मौत ने
प्रदेश के जन-मन को मथ दिया है।
भोगनाडीह*= वीर सिदो-कान्हु का जन्म स्थली।

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