Posted by : Sushil Kumar Friday, March 29, 2013

गूगल से साभार 
विता के लिये
सिर्फ़ शब्द नहीं 
मुझे हृदय की मौन भाषा चाहिए
मन की अदृश्य लिपियों में गढ़ी
सुगबुगाते हुए और 
अभिव्यक्ति को बेचैन
भावों के अनगिन तार दे दो मुझे

कविता के लिये
मात्र आँखों का कँवल नहीं
उसका जल चाहिए मुझे
उनमें पलते सपनों की आहट
कोई सुनाओ मुझे

सुबह से शाम तक
दो जून रोटी के वास्ते
जिन कायाओं ने रच रखी है
पूरी दुनिया में श्रम का संगीत
उसका नाद चाहिये, ताल चाहिए

मुझे स्वेद से लथ-पथ बेकसों की
बेकली भी चाहिए
कविता के लिये

मेरे शब्द तुम 
गगनचुंबी इमारतों में 
मजबूर औरतों की कराह सुनो और 
गहो कविता में  
जो गिरती रात के साथ,
गहरी और घनी होती जा रही है 

अनकही बहुत सी कहनी है 
इसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
उसकी तह में पैठे मुझे 
नए अनुभव-अनुभाव चाहिए

नहीं चाहिए मुझे 
दराजों में दीमक चाट रहे अधमरे शब्द
जिनसे मयखाने में बैठ रोज़ लिखी जा रही
जनवाद की बेहद झूठी कविताएँ

कविता में तो मुझे
ज़िन्दा टटका लोक का ठेठ शब्द चाहिए
आहत आत्माओं का
अनाहत स्वर और नव लय चाहिए

{ 8 comments... कृपया उन्हें पढें या टिप्पणी देंcomment }

  1. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!

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  2. कविता में जिंदगी के स्वर और सुर चाहिए !

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  3. यह कविता एक सच्चे कवि की ईमानदारी, जन से जुड़ने की इच्छा और उसके सामाजिक सरोकारों की ओर संकेत करती है। आज बहुत सी कविताएं इसलिए जनविमुख होती हैं क्योंकि उनमें शब्दों के माध्यम से झूठा आडम्बर रचा जाता है।

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  4. अनकही बहुत सी कहनी है
    इसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
    उसकी तह में पैठे मुझे
    नए अनुभव-अनुभाव चाहिए.......

    हृदय को छूने वाली रचना है।

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  5. बिल्कुल सही चाहना की है।

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  6. सशक्त, सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  7. अनकही बहुत सी कहनी है
    इसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
    उसकी तह में पैठे मुझे
    नए अनुभव-अनुभाव चाहिए


    बहुत सुंदर कविता गूढ़ भाव सार्थक सन्देश.

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  8. बहुत अच्छा लिखते हैं आप..

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